Posts Tagged ‘patriotic hindi poems’

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जो फिक्र राष्ट्र की करते है
वो नहीं किसी से डरते है
हंस कर सूली चढ़ते है
शत्रु भी उनसे डरते है
वो लहू युवा ही होता है
जिसने गर्म लहू संचार किया
भारत माँ को अपना शीश चढ़ा
भारत माँ का था श्रन्गार किया
अशफाक़ आज़ाद हो सुखदेव भगत
हर ने अल्हड बेबाक अंदाज़ जिया
फांसी के फन्दे चूम उठे
भारत माँ पर सब कुछ वार दिया
क्युकी जो फिक्र राष्ट्र की करते है
वो नहीं किसी से डरते है
हंस कर सूली चढ़ते है
शत्रु भी उनसे डरते है
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आपका अपना
रवि कुमार “रवि”

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कब बाधाये रोक सकी है
हम आज़ादी के परवानो की
न तूफ़ान भी रोक सका
हम लड़ कर जीने वालो को
हम गिरेंगे, फिर उठ कर लड़ेंगे
ज़ख्मो को खाए सीने पर
कब दीवारे भी रोक सकी है
शमा में जलने वाले परवानो को
गौर ज़रा से सुन ले दुश्मन
परिवर्तन एक दिन हम लायेंगे
ये हमले, थप्पड़ जूतों से
हमको पथ से न भटका पाएंगे
ये ओछी, छोटी हरकत करके
हमारी हिम्मत तुम और बढ़ाते हो
विनाश काले विपरीत बुद्धी
कहावत तुम चरितार्थ कर जाते हो
जब लहर उठेगी जनता में
तुम लोग कभी न बच पाओगे
देख रूप रौद्र तुम जनता का
तुम भ्रष्ट सब नतमस्तक हो जाओगे
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रवि भद्र “रवि”

जहाँ कलम पड़ी रहती सत्ता के गलियारों में
जहाँ शब्द भी बिक जाते चंद सिक्को की झंकारों में
उस भारत की धरती पर अग्निशिखा जलने निकला हु
शब्दों के बुन मैं जाल यहाँ इतिहास बनाने निकला हु
नेता हो, अभिनेता हो यहाँ सब अपने मद जीते है
नही राष्ट्र की फिकर इन्हें ये लहू देस का पीते है
इन सत्ता के लत्खोरो को इनकी औकात बताने निकला हु
अपने शब्दों से आग लगा इनकी चिता जलने निकला हु
शब्दों के बुन मैं जाल यहाँ इतिहास बनाने निकला हु

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रवि कुमार “रवि”

लिखने को तो मैं भी
रस, छंद अलंकार लिख दू
वासना में डूबा हुआ
मैं प्यार लिख दू
मुझमे भी है बाकि अभी
कुछ इश्क की बारीकिया
गर कहो तो शब्दों में मैं
अपनी दिल की हर बात लिख दू
पर तुम बताओ साथिओ
क्या मुल्क के ऐसे हालात है
के तज के खडग हाथो से अपने
प्रेमिका का अपने श्रृंगार कर दू
देती नहीं मुझे इजाज़त
मेरे मुल्क की वीरानिया
ऐसे में छोड़ कर वीर रस
कैसे मैं श्रृंगार और मनुहार लिख दू
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रवि कुमार “रवि”

हम तेरी महफ़िल बस
एक कडवा सच बताने आये है
अस्तीनो में छुपे है जो सांप तेरे
वो विषधर दिखने आये है
रो रही माँ भारती
बिलख बिलख कर
तू जागता क्यों नहीं ऐ नौजवा
माँ भारती का जो है चीर हरते
वो दुशाशन तुझको दिखाने आये है
अब तेरी मर्ज़ी जो हो
वोही तू समझ ले ऐ नौजवान
चाहे बचा ले राष्ट्र अपना
चाहे भुला दे राष्ट्र हित को तू
तेरी बहती नसों में जो आग है
उसकी तपिश तुझको दिखाने आये है
अस्तीनो में छुपे है जो सांप तेरे
वो विषधर दिखने आये है
……………
रवि कुमार “रवि”

श्रृंगार लिखने वालो का
कोई तिरस्कार नहीं करता
और वीर रस के लेखो पर
कोई वाह नहीं करता]
प्यार इश्क विश्क की बाते
लोगो की बहुत सुहाती है
ज़ख़्मी शब्दों के घावो पर
देखो कोई उपचार नहीं लिखता
पर फिर भी में लिखता हु
लाल रंग की स्याही से
देश धर्म की रक्षा का मुझको
और कोई औजार नहीं दिखता
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रवि कुमार “रवि”

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एक छोटी सी रचना
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जय हो गणतंत्र
धन्य हो लोकतंत्र
खड्डे में जनता,
महंगाई से मरता
सिलेंडर में दबता
तेल में जलता
घुटता जनतंत्र
अद्भुत लोकतंत्र
जय हो गणतंत्र
छद्म पंथनिरपेक्षता ढोता
संस्कृति को रोता
आतंकवाद से मरता
अधिकारों को लड़ता
अनगिनत फूहड़ता
चूल्हे में जनतंत्र
जय ही गणतंत्र
उम्मीदों पर जीता
ज़ख्मो को सीता
बचपन को बचाता
सुनहरे ख्वाब देखता
कब आएगा गणतंत्र
जब धन्य होगा लोकतंत्र
और कहेंगे हम
जय हो गणतंत्र
जय हो लोकतंत्र
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रवि कुमार “रवि”

आओ तुम्हे बंगाल दिखा दू
भारत की संस्कृतिक प्राचीर दिखा दू
शांति – क्रांति का अद्भुत मिश्रण
ऐसी बंगाली तासीर दिखा दू
हर हिन्दुस्तानी को गर्व दिया है
वन्देमातरम का तर्ज दिया है
१६ वर्ष में चढ़ा जो फांसी
खुदीराम नाम का अल्ल्हड़ युवा दिया है
८ वर्ष में जिसने बाघ था मारा
कुल्हाड़ी वाला बाघा जतिन दिया है
खून के बदले जो देता आजादी
बाबु सुभाष एक बंगाली नाम दिया है
हरे कृष्ण नाम की सब जपते माला
पहला जपने वाला चैतन्य महाप्रभु दिया है
जिंदगी की रस्ते जब कोई साथ नही दे
तब एकला चोलो का मंत्र दिया है
हिन्दुस्तानी भारत को मेरे
संस्कृतिक एक इतिहास दिया है
आओ तम्हे बंगाल दिखा दू
एक भारत की अद्भुत तस्वीर दिखा दू
भारत की संस्कृतिक प्राचीर दिखा दू
शांति – क्रांति का अद्भुत मिश्रण
ऐसी बंगाली तासीर दिखा दू
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रवि कुमार “रवि”

संघर्षो की छाया में हम भारतवंशी पलते आये हैं
तलवारों की गूंजो संग हमने गीत स्वाभिमान के गाये है
अरि मुंडो के ढेर लगा हम निज गौरव मान बढ़ाएंगे
शोणित से भारत माँ का कर वंदन निज भारत नया बनायेंगे
है कौन रहा इस जगह में, जो हम से युद्ध में जीत गया
गौरी हो या हो अफजल, उसको इतिहास हमारा लील गया
भारत माँ की रक्षा को शिवा – पृथ्वी फिर लौट कर आयेंगे
देश धर्म की रक्षा को, फिर से महाभारत नया रचाएंगे
यह भारत की पवन धरती है, गीता रामायण के बोल यहाँ
शास्त्रों के संग शस्त्रो की, संगत रही अनमोल यहाँ
हम बुद्ध संग ध्याते कृष्णा यहाँ, शंखनाद सुनाते आयेंगे
शोणित से भारत माँ का वंदन कर निज भारत नया बनायेंगे
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जय श्री राम
रवि कुमार “रवि”