Posts Tagged ‘Veer Ras’

संगीनों के साये में यारो आज़ादी चलती है …………..
वक्त उधर ही चलता है जिस और जवानी चलती है …………..
है कौन वो माँ का लाल जो यारो अपने लहू से खेलेगा
रक्तरंजित हाथो से अपनी भारत माँ की किस्मत बदलेगा
चैन चमन में आता है जब बंदूके गरजा करती है
फाड़ के जब दुश्मन का सीना गोली निकला करती है
संगीनों के साये में यारो आज़ादी चलती है …………..
वक्त उधर ही चलता है जिस और जवानी चलती है ……………
…………
रवि कुमार “रवि”

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Bharat Mata, Mother India, My Mother Land

Bharat Mata, Mother India, My Mother Land

पुण्य भूमि है धरती अपनी
भारत माता के गीत सब गाओ रे
चन्दन है इस देश की माटी
इसका तिलक लगाओ रे ……………….
हर कन्या इस देश की सीता,
हर बालक कृष्ण सलोना
धरती अपनी अन्न जल देती
महकता हर आँगन हर कोना
सब मिल करे है भारत माँ का वंदन
उच्च स्वर में सब गुनगुनाओ रे
चन्दन है इस देश की माटी
इसका तिलक लगाओ रे ……………….
धरती सुनहरी अम्बर नीला
यहाँ बहती गंगा यमुना सरस सलिला
खुशिया है बाँटता हर शहर हर गाँव रे
चन्दन है इस देश की माटी
इसका तिलक लगाओ रे ……………….
बहुत कुछ पाया इस देश से हमने
जीवन की हर खुशिया और हर रंग
दिया देश ने हमको क्या जवानी क्या बचपन की छाओ रे
चन्दन है इस देश की माटी
इसका तिलक लगाओ रे ……………….

रवि कुमार “रवि”

जो फिक्र राष्ट्र की करते है
वो नहीं किसी से डरते है
हंस कर सूली चढ़ते है
शत्रु भी उनसे डरते है
वो लहू युवा ही होता है
जिसने गर्म लहू संचार किया
भारत माँ को अपना शीश चढ़ा
भारत माँ का था श्रन्गार किया
अशफाक़ आज़ाद हो सुखदेव भगत
हर ने अल्हड बेबाक अंदाज़ जिया
फांसी के फन्दे चूम उठे
भारत माँ पर सब कुछ वार दिया
क्युकी जो फिक्र राष्ट्र की करते है
वो नहीं किसी से डरते है
हंस कर सूली चढ़ते है
शत्रु भी उनसे डरते है
………………….
आपका अपना
रवि कुमार “रवि”

मैं हिंदुस्तान हूँ, अब दुनिया में फैलना चाहता हु
सरहदों के पार अब निकलना चाहता हु
कब तलक में रहूँगा इन सरहदों की बंदिशों में
तोड़ अपनी बंदिशों, हदों को झिनझोड़ना चाहता हु
है एक तरफ कोई नापाक
तो दूसरी तरफ चीन का ये झुनझुना है
इधर अपना कश्मीर है बदतर
उधर केरल असम तक जल रहा हैं
अपनी धधक से इस आग को बुझाना चाहता हु
पाक हो या चीन मिटटी में मिलाना चाहता हूँ
अब मैं फिर ऊँची परवाज़ भरना चाहता हूँ
दिल्ली, इस्लामाबाद से बीजिंग तलक
सारी हदों को जोड़ना चाहता हु
मैं हिंदुस्तान हूँ, अब दुनिया में फैलना चाहता हु
सरहदों के पार अब निकलना चाहता हु
एक भगवे के तले फिर से खड़ी होगी दुनिया
अखंड भारत के स्वप्न को इक बार फिर जीना चाहता हूँ
हर मुल्क, हर देश को खुद में समेटना चाहता हु
अमरीका हो या जर्मन सबको बताना चाहता हूँ
मैं हिंदुस्तान हूँ, अब दुनिया में फैलना चाहता हु
सरहदों के पार अब निकलना चाहता हु
……………………..
रवि कुमार “रवि”

हम तेरी महफ़िल बस
एक कडवा सच बताने आये है
अस्तीनो में छुपे है जो सांप तेरे
वो विषधर दिखने आये है
रो रही माँ भारती
बिलख बिलख कर
तू जागता क्यों नहीं ऐ नौजवा
माँ भारती का जो है चीर हरते
वो दुशाशन तुझको दिखाने आये है
अब तेरी मर्ज़ी जो हो
वोही तू समझ ले ऐ नौजवान
चाहे बचा ले राष्ट्र अपना
चाहे भुला दे राष्ट्र हित को तू
तेरी बहती नसों में जो आग है
उसकी तपिश तुझको दिखाने आये है
अस्तीनो में छुपे है जो सांप तेरे
वो विषधर दिखने आये है
……………
रवि कुमार “रवि”

आओ तुम्हे बंगाल दिखा दू
भारत की संस्कृतिक प्राचीर दिखा दू
शांति – क्रांति का अद्भुत मिश्रण
ऐसी बंगाली तासीर दिखा दू
हर हिन्दुस्तानी को गर्व दिया है
वन्देमातरम का तर्ज दिया है
१६ वर्ष में चढ़ा जो फांसी
खुदीराम नाम का अल्ल्हड़ युवा दिया है
८ वर्ष में जिसने बाघ था मारा
कुल्हाड़ी वाला बाघा जतिन दिया है
खून के बदले जो देता आजादी
बाबु सुभाष एक बंगाली नाम दिया है
हरे कृष्ण नाम की सब जपते माला
पहला जपने वाला चैतन्य महाप्रभु दिया है
जिंदगी की रस्ते जब कोई साथ नही दे
तब एकला चोलो का मंत्र दिया है
हिन्दुस्तानी भारत को मेरे
संस्कृतिक एक इतिहास दिया है
आओ तम्हे बंगाल दिखा दू
एक भारत की अद्भुत तस्वीर दिखा दू
भारत की संस्कृतिक प्राचीर दिखा दू
शांति – क्रांति का अद्भुत मिश्रण
ऐसी बंगाली तासीर दिखा दू
……………….
रवि कुमार “रवि”

संघर्षो की छाया में हम भारतवंशी पलते आये हैं
तलवारों की गूंजो संग हमने गीत स्वाभिमान के गाये है
अरि मुंडो के ढेर लगा हम निज गौरव मान बढ़ाएंगे
शोणित से भारत माँ का कर वंदन निज भारत नया बनायेंगे
है कौन रहा इस जगह में, जो हम से युद्ध में जीत गया
गौरी हो या हो अफजल, उसको इतिहास हमारा लील गया
भारत माँ की रक्षा को शिवा – पृथ्वी फिर लौट कर आयेंगे
देश धर्म की रक्षा को, फिर से महाभारत नया रचाएंगे
यह भारत की पवन धरती है, गीता रामायण के बोल यहाँ
शास्त्रों के संग शस्त्रो की, संगत रही अनमोल यहाँ
हम बुद्ध संग ध्याते कृष्णा यहाँ, शंखनाद सुनाते आयेंगे
शोणित से भारत माँ का वंदन कर निज भारत नया बनायेंगे
…………………
जय श्री राम
रवि कुमार “रवि”

एक कवी की उसी के ही तरीके से
जवाब देने की एक छोटी सी कोशिश
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सुना था मैंने नहीं कभी कवी ने
सूरज को धुन्दला बतलाया
थामी जिसने कलम की ताकत
उसका नहीं ज़मीर बिक पाया
पर अब हर मोड़ और हर नुक्कड़ पर
धोखे बाज़ खड़े है
पहन देश भक्ति का चोला
काले गद्दार खड़े है
ऐसे ऐसे कवी हुए है
जिनकी कलम में स्याही नहीं, लहू भरा था
अपनी कलम के बल पर जिसने
क्रांति का अग्नि पथ लिखा था
तेरे देश में देख रवि अब
ऐसे झूठे लेखक कवी खड़े है
सत्ता हथियाने की ललक में जिनके
ज़मीर धरती पर मुर्दों की तरह गड़े है

द्वापर युग कृष्ण रूप में जन्मे
त्रेता में तुम जन्मे बनकर राम
पुनः जन्म लो इश्वर फिर से,
लेकर कोई नाम
धर कर कोई नाम धरती पर
महाभारत सा खेल रचाओ
भारत माँ की लुटती अस्मत
हे कृष्ण हे राम बचाओ
सत्ता पर बैठे दुस्शाशन
फिर से नारी का चीर हरे है
राष्ट्रद्रोही लोगो की झमघट से
सत्ता सिंहासन अटे पड़े है
पुनः धरो तुम रूप राम का
या फिर चक्र सुदर्शन लाओ
इस पुण्य भूमि के हित को
पुनः अर्जुन को गांडीव थमाओ
दो श्री राम आशीष हमें हम
हनुमान सी ताकत पाएं
ढा शत्रु की लंका फिर से
भारत माँ की लाज बचाएँ
आतताइयों के हाथ अब
मस्तक तक पहुँच रहे है
मस्तक कटे धड वीरो के
अब प्रतुत्यर मांग रहे है
ध्रितराष्ट्र सा अंधापन
भारत में फिर से दीख रहा है
कृष्ण राह दिखलायेंगे क्या फिर से
हर भारतवंशी अर्जुन पूछ रहा है
द्वापर युग कृष्ण रूप में जन्मे
त्रेता तुम जन्मे बनकर राम
पुनः जन्म लो इश्वर फिर से
लेकर कोई नाम
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जय श्री राम
रवि कुमार ” रवि”